Know Why Petrol And Diesel Prices Keep Going Up, Lockdown Or No Lockdown, Center Govt Revenue Increased By 307 Percent In Last Six Years From Fuel – लॉक हो या अनलॉक : पेट्रोल 100 रुपये के पार, आखिर क्यों बढ़ रहे हैं दाम

सार

देश में ईंधन के दाम फिर आसमान चूमने लगे हैं। कुछ शहरों में पेट्रोल 100 के पार पहुंच गया है। ऐसे में बार-बार सवाल यही उठता है कि कच्चे तेल सस्ता है तो फिर पेट्रोल इतना महंगा क्यों है? खास बात यह है कि पिछले छह सालों में यानी साल 2014 के बाद से अब तक पेट्रोलियम पदार्थों पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में दोगुने से भी ज्यादा का इजाफा हुआ है।
 

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देश के कई शहरों में पेट्रोल के दाम 101 से 103 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गए हैं। कई हिस्सों में लॉकडाउन के कारण तेल की खपत भी कम हो रही है और विश्व बाजार में कच्चे तेल के दाम भी कम हैं, फिर भी भारत में तेल क्यों महंगा है? यह समझने के लिए हमें पेट्रोल डीजल के दामों का गणित समझना होगा। इसका कच्चे तेल की कीमत व टैक्स ही आधार नहीं हैं।

दरअसल एक फॉर्मूला है, जिसके आधार पर पेट्रोल पंप पर बिकने वाले ईंधन के दाम तय होते हैं। इसमें कच्चे तेल के दाम, परिवहन, रिफाइनरी का खर्च, केंद्र व राज्य सरकारों के कर, पंपों का कमीशन जैसी तमाम चीजें शामिल होती हैं। 

यह सच है कि भारत अपनी जरूरत का अधिकांश ईंधन आयात करता है। कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) द्वारा तय की जाती है। भारत को भी ओपेक द्वारा तय दर पर कच्चा तेल खरीदना पड़ता है। लेकिन जब कच्चे तेल की कीमतें गिरती हैं, तब भी भारत में उपभोक्ता पेट्रोल और डीजल के लिए ऊंची कीमत चुकाते हैं, यह माजरा समझना होगा। 

टीपीपी फॉर्मूले से तय होते हैं दाम
पंपों पर ग्राहकों को बेचे जाने वाले तेल की कीमत ट्रेड पैरिटी प्राइसिंग (टीपीपी) फॉर्मूले से तय होती है। इसका 80:20 का अनुपात रहता है। यानी देश में बेचे जाने वाले पेट्रोल-डीजल के मूल्य का 80 प्रतिशत हिस्सा विश्व बाजार में वर्तमान में बेचे जा रहे ईंधन के दामों से जुड़ा होता है। शेष 20 फीसदी हिस्सा अनुमानित मूल्य के अनुसार जोड़ा जाता है। जानकारों का कहना है कि भारत में कच्चे तेल के शोधन और मार्केटिंग की लागत का पंपों पर ईंधन के असल दामों से कोई लेना-देना नहीं है।

रिजर्व बैंक ने बताई यह वजह
पेट्रोल की कीमत मुंबई व भोपाल जैसे शहरों में 100 के पार पहुंच चुकी हैं। दिल्ली में दाम लगभग 95 रुपये प्रति लीटर हैं। रिजर्व बैंक ने तेल के दामों में उछाल पर लगाम के लिए सुझाव दिए हैं। बैंक के अनुसार मूल्यवृद्धि की मुख्य वजह केंद्र और राज्यों द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों पर लगाए जाने वाले टैक्स हैं।

पेट्रोलियम पदार्थों पर प्रत्येक राज्य अपनी दरों के अनुसार कर वसूलता है। केंद्रीय उत्पाद शुल्क के अलावा राज्यों के कर व स्थानीय कर शहरों द्वारा वसूले जाते हैं। दिल्ली के उदाहरण से इसे समझते हैं। 16 मई को दिल्ली में पेट्रोल करीब 92.58 रुपये लीटर था। इंडियन ऑयल का इस दिन आधार मूल्य 34.19 रुपये लीटर था। इस पर 0.36 रुपये लीटर ढुलाई खर्च जुड़ा।

इस तरह डीलर को 34.55 रुपये प्रति लीटर में पड़ा। इसके बाद इस पर उत्पाद शुल्क भी लगा 32.89 रुपये लीटर, डीलर का कमीशन लगा 3.77 रुपये लीटर, 22 फीसदी दिल्ली सरकार का वैट करीब 21.36 रुपये लगा। इस तरह सब मिलाकर प्रति लीटर का अंतिम बिक्री मूल्य हो गया 92.578 रुपये लीटर।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार गत वर्ष दिसंबर में पेट्रोल के आधार मूल्य पर दिल्ली में केंद्र व राज्य 180 फीसदी कर वसूलते थे, जबकि डीजल पर 141 फीसदी। दूसरी और जर्मनी में 65 फीसदी ईंधन पर कुल 65 फीसदी और इटली में मात्र 20 फीसदी कर वसूला जाता है।

देश में बीते छह सालों में केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल से कमाई 307 फीसदी तक बढ़ा ली है। सरकार की कमाई का यह बड़ा जरिया बना हुआ है। इस बीच शनिवार को मुंबई व भोपाल में पेट्रोल के दाम 100 रुपये लीटर के पार पहुंच गए। 

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन सालों में पेट्रोल-डीजल से सरकार को टैक्स से कमाई तीन गुना से ज्यादा तक बढ़ चुकी है। अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 के बीच सरकार ने तेल पर टैक्स के माध्यम से 2.94 लाख करोड़ रुपये का राजस्व जुटाया है। 

इस दौरान विश्व बाजार में कच्चे तेल की कीमतें नीचे आईं, इसके बाद भी इस पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी जारी रही। 2020-21 में यह 12.2 फीसदी तक पहुंच गया, जबकि 2014-15 में यह 5.4 फीसदी था।

बीते दिनों लोकसभा में वित्त मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक सवाल के जवाब में बताया था कि पिछले छह सालों में पेट्रोल और डीजल पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क के माध्यम से कुल कर संग्रह में 307.3 फीसदी की वृद्धि हुई है। इसमें अकेले पेट्रोल से कर संग्रह 206 फीसदी और डीजल से 377 फीसदी बढ़ा है।

शहर कीमत
दिल्ली 94.76
मुंबई 100.98
भोपाल 102
कोलकाता 94.76
चेन्नई 96.24
बंगलूरू 87.92

डीजल के दाम (रुपये प्रति लीटर)

शहर कीमत
दिल्ली 85.66
कोलकाता 88.51
मुंबई 92.99
चेन्नई 90.38
बंगलूरू 90.81

 

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देश के कई शहरों में पेट्रोल के दाम 101 से 103 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गए हैं। कई हिस्सों में लॉकडाउन के कारण तेल की खपत भी कम हो रही है और विश्व बाजार में कच्चे तेल के दाम भी कम हैं, फिर भी भारत में तेल क्यों महंगा है? यह समझने के लिए हमें पेट्रोल डीजल के दामों का गणित समझना होगा। इसका कच्चे तेल की कीमत व टैक्स ही आधार नहीं हैं।

दरअसल एक फॉर्मूला है, जिसके आधार पर पेट्रोल पंप पर बिकने वाले ईंधन के दाम तय होते हैं। इसमें कच्चे तेल के दाम, परिवहन, रिफाइनरी का खर्च, केंद्र व राज्य सरकारों के कर, पंपों का कमीशन जैसी तमाम चीजें शामिल होती हैं। 

यह सच है कि भारत अपनी जरूरत का अधिकांश ईंधन आयात करता है। कच्चे तेल की कीमत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) द्वारा तय की जाती है। भारत को भी ओपेक द्वारा तय दर पर कच्चा तेल खरीदना पड़ता है। लेकिन जब कच्चे तेल की कीमतें गिरती हैं, तब भी भारत में उपभोक्ता पेट्रोल और डीजल के लिए ऊंची कीमत चुकाते हैं, यह माजरा समझना होगा। 

टीपीपी फॉर्मूले से तय होते हैं दाम

पंपों पर ग्राहकों को बेचे जाने वाले तेल की कीमत ट्रेड पैरिटी प्राइसिंग (टीपीपी) फॉर्मूले से तय होती है। इसका 80:20 का अनुपात रहता है। यानी देश में बेचे जाने वाले पेट्रोल-डीजल के मूल्य का 80 प्रतिशत हिस्सा विश्व बाजार में वर्तमान में बेचे जा रहे ईंधन के दामों से जुड़ा होता है। शेष 20 फीसदी हिस्सा अनुमानित मूल्य के अनुसार जोड़ा जाता है। जानकारों का कहना है कि भारत में कच्चे तेल के शोधन और मार्केटिंग की लागत का पंपों पर ईंधन के असल दामों से कोई लेना-देना नहीं है।

रिजर्व बैंक ने बताई यह वजह

पेट्रोल की कीमत मुंबई व भोपाल जैसे शहरों में 100 के पार पहुंच चुकी हैं। दिल्ली में दाम लगभग 95 रुपये प्रति लीटर हैं। रिजर्व बैंक ने तेल के दामों में उछाल पर लगाम के लिए सुझाव दिए हैं। बैंक के अनुसार मूल्यवृद्धि की मुख्य वजह केंद्र और राज्यों द्वारा पेट्रोलियम पदार्थों पर लगाए जाने वाले टैक्स हैं।


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