Jayant Chaudhary: चौधरी साहब, ‘छोटे चौधरी’ और अब जयंत चौधरी ने संभाली विरासत, बने RLD सुप्रीमो, 2022 से पहले बड़ी चुनौती – jayant chaudhary becomes national president of rashtriya lok dal

लखनऊ
चौधरी अजित सिंह की आकस्मिक मौत के बाद मंगलवार को राष्ट्रीय लोकदल (RLD) का नया अध्यक्ष जयंत चौधरी को चुना गया। आरएलडी की वर्चुअल मीटिंग में सदस्यों ने एक सुर में पार्टी के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी को अध्यक्ष बनाए जाने की वकालत की। इसके बाद स्वर्गीय अजित सिंह के पुत्र जयंत चौधरी को औपचारिक रूप से पार्टी का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया।

राष्ट्रीय लोकदल का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के बाद जयंत चौधरी ने 26 मई को प्रस्तावित किसानों के आंदोलन को अपनी पार्टी का समर्थन देने का ऐलान किया। इससे पहले उन्होंने पार्टी मुख्यालय में स्व.चौधरी अजीत सिंह को श्रद्धांजलि दी। इस दौरान पार्टी के सभी 34 सदस्य वर्चुअल माध्यम से जुड़े। जयंत चौधरी, चौधरी चरण सिंह के खानदान की तीसरी पीढ़ी है। ऐसे में इस बार उनके सामने कई चुनौतियां भी हैं।

‘बड़े चौधरी’ से ‘छोटे चौधरी’ तक का सफर
दरअसल बड़े चौधरी यानी चरण सिंह ने ऐसा वोट बैंक (किसान) तैयार किया था, जिसमें जाति और मजहब की कोई दीवार नहीं थी। उन्होंने ऐसी मानसिकता तैयार करने में कामयाबी पाई थी कि जो किसान है उसकी जाति भी किसान है और उसका मजहब भी किसान है। यही वोट बैंक चौधरी चरण सिंह की सबसे बड़ी ताकत बना और इसके जरिए वे हिंदी बेल्ट के सबसे रसूख वाले नेता के रूप में स्थापित हुए। लेकिन छोटे चौधरी यानी अजित सिंह किसान वोट बैंक को सहेज नहीं पाए थे, हालांकि वह केंद्र में कई अलग-अलग प्रधानमंत्रियों के साथ मंत्री बने लेकिन उनकी पहचान किसान नेता के बजाय जाट नेता के रूप में बनी।

जनाधार का दायरा वेस्ट यूपी के कुछ खास जिलों तक सीमित
यही वजह थी कि उनके जनाधार का दायरा वेस्ट यूपी के कुछ खास जिलों तक ही सीमित होकर रह गया। अलग-अलग मौकों पर अलग-अलग राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन का निर्णय किसान वोट बैंक के बिखरने का सबब बना। किसान वोट बैंक के पूरी तरह बिखरने के बाद वेस्ट यूपी में जातीय वोट बैंकों की पैठ मजबूत हुई और यहीं से चौधरी अजित सिंह के लिए भी कठिन दौर की शुरुआत हुई थी।

पिता की जगह ले पाएंगे जयंत!
जयंत चौधरी के लिए जितनी बड़ी चुनौती यह है कि क्या वह अपने पिता के निधन के बाद रिक्त हुए स्थान की भरपाई कर पाएंगे, उससे कहीं बड़ी चुनौती यह है कि क्या जाट बिरादरी उन्हें अपना नेता स्वीकार करेगी? वैसे यह उनके लिए बहुत आसान काम नहीं होगा। सहानुभूति की लहर का ही भरोसा है, जो जाट बिरादरी में उन्हें स्थापित कर सकता है। यह भी देखने वाली बात होगी कि वह किस तरह का राजनीतिक समीकरण तैयार करते हैं।

2014 ने तो तस्वीर ही बदल दी
2013 में यूपी के मुजफ्फरनगर जिले में हुए साम्प्रदायिक दंगों ने वेस्ट यूपी का सारा सियासी समीकरण ही बदल डाला। जाट जो कि एक समय चौधरी अजित सिंह का वोट बैंक कहा जाता था, उसने बीजेपी का साथ पकड़ लिया। नतीजा यह हुआ कि 2014 के लोकसभा चुनाव में चौधरी अजित सिंह की पार्टी का वेस्ट यूपी से पूरी तरह सफाया हो गया। खुद अजित सिंह, उनके बेटे जयंत चौधरी, दोनों को ही हार का सामना करना पड़ा।

403 विधानसभा सीटों में से महज एक सीट पर ही जीत
इसके बाद 2017 के यूपी के विधानसभा चुनाव में भी पार्टी अपने वोट बैंक को वापस लाने में कामयाबी नहीं पा सकी। राज्य की 403 विधानसभा सीटों में से महज एक सीट पर ही जीत मिल पाई। यह सिलसिला 2019 के लोकसभा चुनाव तक जारी रहा। 2019 के चुनाव में भी अजित सिंह और जयंत चौधरी दोनों को हार का सामना करना पड़ा और पार्टी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली।

2022 विधानसभा चुनाव बड़ी चुनौती
जयंत चौधरी अपने पिता के जीवनकाल में ही नेता के रूप स्थापित हो चुके हैं इसलिए अब उनके नेता के रूप में स्थापित होने पर कोई संशय नहीं। रही बात वोटों के बिखराव की तो अजित सिंह की जिंदगी में ही समाज को अपनी चूक का अहसास हो गया था। पंचायत चुनाव में वेस्ट यूपी में राष्ट्रीय लोकदल को मिली जीत से यह बात साबित भी होती है। 2022 का विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी मिलकर ही लड़ेगी।

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *