केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने विपक्ष के भारी विरोध के बीच शनिवार को माकपा की अगुवाई वाली एलडीएफ सरकार के केरल पुलिस अधिनियम में संशोधन के अध्यादेश को मंजूरी दे दी। अब सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट करने पर पांच साल की सजा हो सकती है। इस कानून को लेकर कांग्रेस नेता चिदंबरम भी भड़क उठे हैं। उन्होंने वरिष्ठ वामपंथी नेता सीताराम येचुरी से सवाल पूछा है।
राज्य सरकार का कहना है कि इस अध्यादेश को महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकने के लिए लाया गया है। वहीं, कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा वह अध्यादेश की मंजूरी की खबर सुनकर स्तब्ध हैं।
कांग्रेस नेता चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा, केरल की एलडीएफ सरकार द्वारा ‘सोशल मीडिया पर तथाकथित आपत्तिजनक पोस्ट’ करने के कारण 5 साल की सजा सुनकर स्तब्ध हूं।’ एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘मेरे मित्र और सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी इस अत्याचारी निर्णय का बचाव कैसे करेंगे?’
विपक्ष बोला, अभिव्यक्ति की आजादी छीनने का प्रयास
विपक्ष ने आरोप लगाया है कि अध्यादेश के जरिए अभिव्यक्ति की आजादी छीनने की कोशिश की जा रही है। राजभवन के सूत्रों के मुताबिक, कोविड-19 से उबरने के बाद आधिकारिक आवास पर लौटने के बाद राज्यपाल ने अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए। विपक्ष का कहना है कि यह संशोधन पुलिस को अधिक शक्ति देगा और प्रेस की स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगाएगा।
पिछले महीने राज्य कैबिनेट ने सेक्शन 118-ए को जोड़ने के साथ पुलिस को अधिक शक्ति देने का फैसला किया था। इस संशोधन के अनुसार, कोई भी व्यक्ति अगर सोशल मीडिया पर किसी व्यक्ति को जानबूझकर डराने और अपमान व बदनाम करने के लिए कोई आपत्तिजनक सामग्री डालता है या प्रसारित करता है, तो उसे पांच साल तक की सजा या दस हजार रुपये तक जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।
सरकार ने बचाव में यह दलील दी
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में केरल के आईटी एक्ट की धारा 66-ए और केरल पुलिस एक्ट के 118-डी को निरस्त कर दिया। शीर्ष अदालत ने इस आधार पर इसे निरस्त किया कि ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ हैं।
वहीं, केरल सरकार ने अपने पक्ष में कहा कि कोरोना महामारी के समय कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर जमकर नफरत भरी बातें पोस्ट कीं। इसके अलावा, अफवाहें भी बढ़ीं। साथ ही महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों में वृद्धि हुई।
सरकार ने कहा कि साइबर अपराधों के चलते नागरिकों की निजी जानकारी को बड़ा खतरा पैदा हो गया है। केरल पुलिस के पास ऐसे अपराधों के निपटने के लिए शक्ति नहीं है, इसलिए यह अध्यादेश लाना पड़ा है।
केरल सरकार ने राज्यपाल और विधानसभा स्पीकर से विपक्ष के नेता रमेश चेन्नीथला और दो पूर्व मंत्रियों के खिलाफ जांच करने की अनुमति मांगी है। रिश्वत मामले में हालिया खुलासे के बाद सरकार ने यह कदम उठाया है। वहीं कांग्रेस ने इसे राजनीति से प्रेरित बताया है। चिदंबरम ने कहा है कि रमेश चेन्निथला और एलओपी को फंसाने के प्रयास से भी हैरान हूं। एक ऐसे मामले में जहां जांच एजेंसी चार बार क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर चुकी थी।
हाल ही में शराब कारोबारी बीजू रमेश ने आरोप लगाया था कि उसने पूर्व यूडीएफ सरकार के दौरान तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष चेन्नीथला, पूर्व आबकारी मंत्री के बाबू व स्वास्थ्य मंत्री वीएस शिवकुमार को रिश्वत दी थी। सीएमओ के सूत्रों के मुताबिक, सीएम ने जांच को लेकर फाइल राज्यपाल व स्पीकर को भेज दी है।
केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने विपक्ष के भारी विरोध के बीच शनिवार को माकपा की अगुवाई वाली एलडीएफ सरकार के केरल पुलिस अधिनियम में संशोधन के अध्यादेश को मंजूरी दे दी। अब सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट करने पर पांच साल की सजा हो सकती है। इस कानून को लेकर कांग्रेस नेता चिदंबरम भी भड़क उठे हैं। उन्होंने वरिष्ठ वामपंथी नेता सीताराम येचुरी से सवाल पूछा है।
राज्य सरकार का कहना है कि इस अध्यादेश को महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकने के लिए लाया गया है। वहीं, कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने कहा वह अध्यादेश की मंजूरी की खबर सुनकर स्तब्ध हैं।
कांग्रेस नेता चिदंबरम ने ट्वीट कर कहा, केरल की एलडीएफ सरकार द्वारा ‘सोशल मीडिया पर तथाकथित आपत्तिजनक पोस्ट’ करने के कारण 5 साल की सजा सुनकर स्तब्ध हूं।’ एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, ‘मेरे मित्र और सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी इस अत्याचारी निर्णय का बचाव कैसे करेंगे?’
विपक्ष बोला, अभिव्यक्ति की आजादी छीनने का प्रयास
विपक्ष ने आरोप लगाया है कि अध्यादेश के जरिए अभिव्यक्ति की आजादी छीनने की कोशिश की जा रही है। राजभवन के सूत्रों के मुताबिक, कोविड-19 से उबरने के बाद आधिकारिक आवास पर लौटने के बाद राज्यपाल ने अध्यादेश पर हस्ताक्षर किए। विपक्ष का कहना है कि यह संशोधन पुलिस को अधिक शक्ति देगा और प्रेस की स्वतंत्रता पर भी अंकुश लगाएगा।
क्या है ये विवादित अध्यादेश
पिछले महीने राज्य कैबिनेट ने सेक्शन 118-ए को जोड़ने के साथ पुलिस को अधिक शक्ति देने का फैसला किया था। इस संशोधन के अनुसार, कोई भी व्यक्ति अगर सोशल मीडिया पर किसी व्यक्ति को जानबूझकर डराने और अपमान व बदनाम करने के लिए कोई आपत्तिजनक सामग्री डालता है या प्रसारित करता है, तो उसे पांच साल तक की सजा या दस हजार रुपये तक जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।
सरकार ने बचाव में यह दलील दी
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में केरल के आईटी एक्ट की धारा 66-ए और केरल पुलिस एक्ट के 118-डी को निरस्त कर दिया। शीर्ष अदालत ने इस आधार पर इसे निरस्त किया कि ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ हैं।
वहीं, केरल सरकार ने अपने पक्ष में कहा कि कोरोना महामारी के समय कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर जमकर नफरत भरी बातें पोस्ट कीं। इसके अलावा, अफवाहें भी बढ़ीं। साथ ही महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराधों में वृद्धि हुई।
सरकार ने कहा कि साइबर अपराधों के चलते नागरिकों की निजी जानकारी को बड़ा खतरा पैदा हो गया है। केरल पुलिस के पास ऐसे अपराधों के निपटने के लिए शक्ति नहीं है, इसलिए यह अध्यादेश लाना पड़ा है।
विपक्षी नेताओं के खिलाफ जांच करने की अनुमति मांगी
केरल सरकार ने राज्यपाल और विधानसभा स्पीकर से विपक्ष के नेता रमेश चेन्नीथला और दो पूर्व मंत्रियों के खिलाफ जांच करने की अनुमति मांगी है। रिश्वत मामले में हालिया खुलासे के बाद सरकार ने यह कदम उठाया है। वहीं कांग्रेस ने इसे राजनीति से प्रेरित बताया है। चिदंबरम ने कहा है कि रमेश चेन्निथला और एलओपी को फंसाने के प्रयास से भी हैरान हूं। एक ऐसे मामले में जहां जांच एजेंसी चार बार क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर चुकी थी।
हाल ही में शराब कारोबारी बीजू रमेश ने आरोप लगाया था कि उसने पूर्व यूडीएफ सरकार के दौरान तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष चेन्नीथला, पूर्व आबकारी मंत्री के बाबू व स्वास्थ्य मंत्री वीएस शिवकुमार को रिश्वत दी थी। सीएमओ के सूत्रों के मुताबिक, सीएम ने जांच को लेकर फाइल राज्यपाल व स्पीकर को भेज दी है।