सीएम योगी की हर सीट पर सभा, अखिलेश-मायावती नहीं निकले, क्या हैं सियासी मायने?

हाइलाइट्स:

  • उत्तर प्रदेश की 7 विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए प्रचार और माहौल बनाने का दौर खत्म
  • 3 नवंबर को जनता तय प्रत्याशियों की किस्मत का करेगी फैसला, 10 को आएंगे इन सीटों के नतीजे
  • सीएम योगी आदित्यनाथ और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की हर सीट पर हुई है सभा

लखनऊ
उत्तर प्रदेश की 7 विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए प्रचार और माहौल बनाने का दौर खत्म हो चुका है। 3 नवंबर को जनता तय प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेगी और 10 को इन सीटों के नतीजे आएंगे। इन सीटों पर जीत के लिए प्रदेश बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने खूब पसीना बहाया है। सीएम योगी आदित्यनाथ और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की हर सीट पर सभा हुई है। वहीं, एसपी मुखिया अखिलेश यादव व बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने घर से जनता को अपील करना मुफीद समझा है।

मंगलवार को अमरोहा की नौगांवा सदात, फिरोजाबाद की टूंडला, बुलंदशहर, उन्नाव की बांगरमऊ, जौनपुर की मलहनी, कानपुर देहात की घाटमपुर व देवरिया सदर विधानसभा सीट पर उपचुनाव होगा। इसमें 6 सीटें बीजेपी के पास और 1 सीट एसपी के पास रही है।

प्रत्याशियों की मेहनत के भरोसे विपक्ष
7 सीटों पर हो रहे इस उपचुनाव में विपक्ष ने नतीजों को प्रत्याशियों की मेहनत पर छोड़ दिया है। चुनाव की घोषणा के पहले एसपी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने चुनावी विधानसभाओं के कार्यकर्ताओं से वर्चुअल संवाद किया था। एसपी मुखिया अखिलेश यादव की कोई रैली या सभा आयोजित नहीं हुई। उन्होंने समर्थन व अपील के बयान जरूर जारी किए हैं। तोड़-फोड़ से जूझ रही बीएसपी के प्रत्याशियों को जिताने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती भी घर से बाहर नहीं निकली। राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र ने जरूरी चुनावी सभाओं को संबोधित किया है।

प्रियंका भी रहीं खामोश!
यूपी में कांग्रेस के उम्मीद के चेहरे के तौर पर पेश की जा रही यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने भी उपचुनाव भर यूपी का रुख नहीं किया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के भरोसे ही प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी रही है। वहीं, सत्ता में काबिज बीजेपी के अहम चेहरों ने चुनाव की घोषणा के पहले और चुनाव प्रचार के बीच भी मेहनत की है। सीएम व प्रदेश अध्यक्ष की रैलियों के अलावा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व दिनेश शर्मा की भी जनसभाएं आयोजित की गईं। प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने भी हर सीट पर चुनावी बैठकें की हैं।

नतीजों के निकलेंगे बड़े सियासी मायने
2022 के विधानसभा चुनाव के करीब डेढ़ साल पहले हो रहे इस दंगल के नतीजों की सियासी हलकों में दूरगामी व्याख्या होगी। ऐतिहासिक जीत के साथ प्रदेश की सत्ता में काबिज बीजेपी सभी सीटों को बचाकर यह संदेश देना चाहेगी कि जनता का उस पर भरोसा पूरी तरह कायम है। वहीं, एसपी सीटों की संख्या बढ़ाकर खुद को विकल्प के तौर पर पेश करने का मौका बनाने में जुटी हुई है।

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सत्ता के संघर्ष के सेमीफाइनल की तरह यह चुनाव
आंतरिक लड़ाई से जूझ रही बीएसपी के लिए भी परिणाम के उसके उत्साह या अवसाद का सबब बनेंगे। कांग्रेस लड़ाई में दिखी और जीती तो उसकी उम्मीदों को बल मिलेगा। खास बात यह है कि जिन 7 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं ये पूर्वांचल, वेस्ट यूपी, सेंट्रल यूपी और बुंदेलखंड सभी क्षेत्रों से जुड़ी हुई है। ऐसे में इनके नतीजों की व्याख्या भी सत्ता के संघर्ष के सेमीफाइनल की तरह ही की जाएगी।

बांगरमऊ में जीत के लिए कांटे की टक्कर
इधर, उन्नाव की बांगरमऊ विधानसभा सीट पर सबकी नजरें रहेंगी। इस सीट को जनसंघ ने सबसे पहले 1967 में जीता था। दूसरी बार बीजेपी को यह सीट 2017 में तब मिली थी, जब बाहुबली कुलदीप सिंह सेंगर यहां से जीता था। 2019 में रेप केस में कुलदीप को मिली सजा के बाद यह सीट रिक्त घोषित कर दी गई। मुस्लिम बहुल इस सीट पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबले की पूरी उम्मीद है। दूसरी तरफ सत्ताधारी बीजेपी को कई फायदों के अलावा एक नुकसान कुछ खास जातियों की नाराजगी से हो सकता है।

बीजेपी की बड़ी चुनौती नाराज मतदाता
बांगरमऊ पर बीजेपी प्रत्याशी श्रीकांत कटियार हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में श्रीकांत जिला अध्यक्ष थे। वे सदर विधायक पंकज गुप्ता के करीबी माने जाते हैं। पंकज ने पार्टी प्रत्याशी को जिताने के लिए जोर लगा रखा है, लेकिन बड़ी चुनौती नाराज मतदाता हैं। क्षत्रिय वोटरों को उम्मीद थी कि कुलदीप को सजा से खाली हुई सीट पर किसी सजातीय को ही मौका मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ओबीसी मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या वाली सीट पर दूसरा बड़ा फैक्टर ब्राह्मण मतदाता हैं। उन्नाव और प्रदेश के नामचीन चेहरों में रहे स्व. गोपीनाथ दीक्षित की बेटी आरती कांग्रेस से मैदान में हैं।

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कांग्रेस ने लगाया पूरा जोर
कांग्रेस के बड़े नेताओं और सलाहकारों ने आरती को जिताने के लिए काफी दम लगाया है। आरती खुद को बांगरमऊ की बेटी के तौर पर पेश कर रही है। एसपी से सुरेश पाल मैदान में है। समाजवादियों के परंपरागत वोटरों के अलावा ओबीसी मतों में सेंधमारी कर सुरेश पाल मुकाबले को रोचक बना सकते हैं। इसी तरह बीएसपी से भी महेश पाल पार्टी के आधार वोटों के अलावा मुस्लिम, ओबीसी वोटों के सहारे लड़ रहे हैं। चुनाव प्रचार खत्म होते-होते केंद्रीय मंत्री की मौजूदगी में बीएसपी के जिला पंचायत सदस्य मुकेश गौतम ने बीजेपी में शामिल होकर बड़ा संदेश दिया है।

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