rjd workers thrashed inside assembly: Bihar Assembly News: Five times When UP’s opposition missed the chance to counter Yogi Aditynath Goverment: यूपी में नहीं बिहार जैसा विपक्ष? वो 5 मौके जब कमजोर दिखे अखिलेश, माया और प्रियंका

हाइलाइट्स:

  • बिहार विधानसभा में बिहार सशस्त्र पुलिस विधेयक को लेकर मंगलवार को खूब हंगामा हुआ
  • आरजेडी विधायकों के रवैये की आलोचना हुई तो उन पर बर्बर पुलिसिया कार्रवाई की भी
  • यूपी में विपक्ष योगी सरकार के खिलाफ उतना आक्रामक नहीं नजर आया, जानिए वो 5 मौके

लखनऊ
बिहार विधानसभा में बिहार सशस्त्र पुलिस विधेयक को लेकर मंगलवार को खूब हंगामा हुआ। आरजेडी विधायकों ने नीतीश सरकार पर हमलावर होते हुए स्पीकर को घेर लिया और फिर विधानसभा के अंदर पुलिस बुलाई गई जिन्होंने हंगामा कर रहे विधायकों को सदन से घसीटते हुए बाहर कर दिया। विधायकों के रवैये की आलोचना हुई तो उन पर बर्बर पुलिसिया कार्रवाई की भी।

वहीं कुछ ने यह भी कहा कि बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और आरजेडी ने जिस तरह सरकार को घेरा उससे विपक्ष की राजनीति को एक गति मिली है जो यूपी में पिछले 4 सालों से गायब है। यहां मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी हो या फिर बीएसपी और कांग्रेस के पास ऐसे कई मौके आए जब सरकार को घेरा जा सकता था लेकिन न तो पूर्व सीएम अखिलेश यादव और न ही बीएसपी सुप्रीमो मायावती उतनी आक्रामक नजर आईं।

बिहार में कूड़े की तरह सदन से बाहर फेंके गए विपक्षी विधायक


‘यूपी में अब मुलायम सिंह यादव वाला विपक्ष नहीं’
वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में कहते हैं, ‘विपक्ष अब चला गया है जो मुलायम सिंह यादव के समय का हुआ करता था, जो कल्याण के समय का था। तब नेता सदन के बाहर मार्च निकालते थे, प्रदर्शन करते थे, धरना देते थे। तब संसद से सदन में लड़ाई होती थी। संसद में नेता बोलते थे और सड़क पर लड़ाई होती थी। अब एक नया मंच आय गया है सोशल मीडिया का। नेताओं ने समझ लिया है कि वे ट्वीट करके राजनीति करेंगे लेकिन ट्वीट से राजनीति नहीं होती। सिर्फ अखिलेश की बात नहीं है, पूरा किसान आंदोलन हो गया लेकिन मायावती के सिर्फ दो ही बयान आए।’

‘सदन मुद्दों के लिए है, लड़ाई के लिए नहीं’
बृजेश शुक्ल ने आगे कहा, ‘जो कल बिहार में हुआ वह लोकतांत्रिक रूप से कलंक है, इस तरह से यूपी में भी खूनी जंग हुई है। 1993 में यहां पर दर्जनों विधायक भर्ती हुए थे अस्पताल में, सर फूटे थे उनके और भयंकर लड़ाई हुई थी, माइक तोड़े गए थे लेकिन सदन पर इस तरह की लड़ाई लड़ने का मतलब आप कमजोर हैं। सदन मुद्दों के लिए हैं। मुद्दों पर अपनी बात पहुंचाने के लिए है।सदन के अंदर लड़ाई झगड़ा ये लोकसभा तक पहुंच गया है। सदन और सड़क की लड़ाई में अंतर होता है।’
अब जानते हैं कि यूपी में पिछले चार ऐसे कौन से 5 मौके आए जब सरकार के खिलाफ विपक्ष कमजोर नजर आया-

1- हाथरस गैंगरेप और मर्डर केस
यूपी में कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा हमेशा से बड़ा मुद्दा रहा है। योगी आदित्यनाथ सरकार के सत्ता में आते ही कानून व्यवस्था दुरुस्त करने के बड़े-बड़े दावे किए गए लेकिन महिलाओं के खिलाफ अपराध पर कोई लगाम दिखती नहीं नजर आई। योगी सरकार के शासनकाल में महिला अपराध की कई गंभीर घटनाएं सामने आईं। उन्नाव रेप केस से लेकर हाथरस तक, योगी सरकार कई बार बैकफुट पर दिखी लेकिन विपक्ष खासकर अखिलेश यादव और उनकी पार्टी ग्राउंड लेवल पर सरकार को घेरने में नाकामयाब रहे।

उन्नाव के एक रेप मामले में अखिलेश जरूर विधानसभा के बाहर धरने पर बैठे और सरकार से इस्तीफे की मांग की लेकिन पिछले साल हाथरस का मामला जो पूरे राष्ट्रीय मीडिया में काफी समय तक छाया रहा अखिलेश यहां पीछे नजर आए। यहां तक कि प्रियंका गांधी और राहुल गांधी तमाम पुलिस पाबंदियों के बावजूद पीड़िता के परिजनों से मुलाकात करके सांत्वना देने पहुंचे लेकिन अखिलेश नदारद रहे। हालांकि उनकी पार्टी के कई नेता वहां पहुंचे थे।

2- यूपी सरकार का विवादित लव जिहाद कानून
योगी आदित्यनाथ सरकार पिछले साल जबरन होने वाले धर्मांतरण के खिलाफ उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्मांतरण प्रतिषेध अध्यादेश-2020 लेकर आई जिसे कानून में तब्दील कर दिया गया है। इस विवादास्पद बिल के कानून बनने से पहले काफी विरोध हुआ। अखिलेश यादव और कांग्रेस ने कहा कि लव जिहाद के बहाने योगी सरकार मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रही है। अखिलेश ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी इसके समर्थन में नहीं है बावजूद इसके विधानसभा में विधायकों की संख्या के आधार पर बीजेपी इसे पास कराने में सफल रही। इसके बाद विधानपरिषद में बिल की पेशी के दौरान सपा नेताओं का काफी विरोध किया लेकिन यहां भी ध्वनि मत से बिल पास करा लिया गया।

3- पोस्टर विवाद की लड़ाई योगी सरकार बनाम कोर्ट की रह गई
उपद्रवियों से क्षतिपूर्ति वसूलने के लिए पिछले साल यूपी कैबिनेट ने रिकवरी पब्लिक ऐंड प्राइवेट प्रॉपर्टी अध्यादेश पारित किया था। इस ऑर्डिनेंस के तहत सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से हर्जाना वसूलने के नियम बनाने का फैसला किया गया। इस बिल का काफी विरोध हुआ था क्योंकि सीएए के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हिंसा मामले में योगी सरकार ने आरोपियों के लखनऊ के कई इलाकों में पोस्टर लगवाए थे। इस मामले में हाई कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए सरकार को फटकार लगाई थी। तब योगी सरकार ने अध्यादेश लाने की बात कही। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। यह लड़ाई योगी सरकार बनाम कोर्ट की बनकर रह गई और विपक्ष पूरी तरह सीन से गायब रहा।

4- यूपी पुलिस के एनकाउंटर पर सिर्फ सोशल मीडिया पर बयानबाजी
योगी सरकार की ओर से राज्य में बिगड़ी कानून-व्यवस्था और अपराधियों पर लगाम लगाने के लिए पुलिस को खुली छूट दी गई है। योगी सरकार के शासनकाल में कई एनकाउंटर हुए। इनमें से कई पर सवाल भी उठे। सीएम योगी ने एक इंटरव्यू में साफ-साफ कहा था कि लोग अपराध करेंगे तो ठोक दिए जाएंगे। अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी ने उनके इस बयान की काफी आलोचना की थी। लेकिन पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठने के बावजूद यहां विपक्ष का किरदार कमजोर दिखा।

5- सोनभद्र हिंसा में अखिलेश-माया के मुकाबले आगे रहीं प्रियंका

सोनभद्र में 17 जुलाई 2019 में दो गुटों के बीच खूनी संघर्ष में 10 लोगों की हत्या हो गई थी। कांग्रेस महासचिव और पूर्वी यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने योगी सरकार को इस मुद्दे पर जमकर घेरा था। नरसंहार के अगले ही दिन सोनभद्र रवाना हुईं प्रियंका और प्रशासन के बीच तकरार की तस्वीरें लोग भूले नहीं हैं। प्रियंका को सोनभद्र में घुसने से रोका गया और उन्हें चुनार गेस्ट हाउस पहुंचा दिया गया। 24 घंटे से ज्यादा वक्त तक प्रियंका वहां डटी रहीं और आखिरकार उन्होंने पीड़ितों से मुलाकात की लेकिन यूपी के दो बड़े क्षेत्रीय दल समाजवादी पार्टी और बीएसपी यहां भी सक्रिय नहीं दिखे।

सरकार का विपक्ष के नेताओं पर आरोप
बीजेपी सरकार कई बार अखिलेश, प्रियंका और मायावती को ट्विटर का नेता बता चुकी है। पिछले साल डेप्युटी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने बयान दिया था कि मायावती, अखिलेश और प्रियंका वाड्रा ट्विटर के ही नेता हैं।

यूपी में नहीं बिहार जैसा विपक्ष

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