Mulayam Singh Yadav Is Champion Of Politics There Is Always An Inherent Meaning Of His Statements | सियासत के माहिर खिलाड़ी रहे हैं मुलायम सिंह यादव, उनके बयान का क्या सियासी मतलब है?
मुलायम सिंह यादव ने मौजूदा लोकसभा के आखिरी दिन नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने को लेकर अपनी इच्छा क्या जताई, पूरे विपक्षी खेमे में हलचल मच गई. सब अवाक रह गए, लेकिन, मुलायम की इस तारीफ के बाद सत्ता पक्ष की तरफ बैठे हुए बीजेपी और एनडीए के सांसदों ने मेजें थपथपा कर उनके बयान का इस्तेकबाल किया. ऐसा होना लाजिमी भी था, क्योंकि बीजेपी के खिलाफ कभी आग उगलने वाले इस बुजुर्ग समाजवादी नेता की तरफ से मोदी को उस वक्त सिरआंखों पर बैठाया जा रहा है, जब देश भर में सभी विरोधी दल मोदी को घेरने में लगे हैं.
यहां तक कि खुद मुलायम सिंह यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी और उस पार्टी के मुखिया उनके बेटे अखिलेश यादव की तरफ से मोदी को हटाने की मुहिम शुरू की गई है, अपने धुर विरोधियों से गठबंधन तक किया जा रहा है, लेकिन, अखिलेश के पिता मुलायम तो मोदी की धुन में मग्न हैं.
आखिर, मुलायम सिंह यादव की तरफ से इस तरह मोदी के लिए शुभकामना देने का क्या मतलब है. क्या मुलायम सिंह मोदी के काम से खुश हैं या फिर अपने बेटे अखिलेश को लेकर उनके मन में कोई नाराजगी है जो इस तरह बाहर निकल रही है.
दरअसल, मुलायम सिंह यादव अखिलेश यादव के उस फैसले से खुश नहीं हैं जिसके तहत अखिलेश ने अपनी धुर-विरोधी मायावती के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है. हमेशा से बीएसपी के खिलाफ मोर्चा खोले मुलायम को इस बात का एहसास रहा है कि गठबंधन के चलते उनकी अपनी पार्टी का ही जनाधार यूपी में सिमट जाएगा. यही वजह रही कि दो साल पहले विधानसभा चुनाव के वक्त भी उनहोंने एसपी के साथ कांग्रेस के गठबंधन को लेकर अपनी खुशी नहीं जाहिर की थी.
लेकिन, अब दौर बदल गया है. अब पार्टी की कमान अखिलेश के हाथ में है और राजनीति के माहिर खिलाड़ी मुलायम पार्टी में भी हाशिए पर हैं. उनके भाई शिवपाल सिंह यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाकर अखिलेश यादव को चुनौती देने का फैसला कर लिया है. लेकिन, मुलायम अपनी धुन में मग्न हैं उन्हें तो बस मोदी में ही वो सब दिख रहा है जो एक अच्छे प्रधानमंत्री बनने के लिए होता है.
नेता जी मुलायम सिंह यादव की यह बात मोदी विरोधियों को नागवार गुजर रही है. उनके अपने लोगों को भी दुखी कर गई है. पुराने साथी आजम खान ने उनके बयान पर कहा है कि उनके बयान से काफी दुख हुआ, लेकिन, यह बयान उनसे दिलवाया गया है. आजम खान का दर्द दिखा रहा है कि जिस नेता जी ने हमेशा बीजेपी के खिलाफ लड़ाई लड़ी, अब उसी बीजेपी को फिर से सत्ता में वापसी का आशीर्वाद दे रहे है तो फिर उनके भविष्य का क्या होगा.
खलबली यूपी के अलावा बिहार में भी मची है, जहां पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने मुलायम सिंह के बयान पर कहा कि उनकी उम्र हो गई है याद नहीं रहता कब क्या बोल रहे हैं. आजम खान और राबड़ी देवी के बयान बता रहे हैं कि नेता जी के चुनाव से ठीक पहले इस दांव के आगे सब सोंचने पर मजबूर हो गए हैं कि आखिर इस दांव का मतलब क्या है. क्योंकि राजनीति में जो दिखता है, वो होता नहीं है और जो होता है वो दिखता नहीं है. वैसे भी बात यह मुलायम सिंह के मुख से निकली है जो कब क्या बोलते हैं और कब क्या करते हैं इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल होता है. एक सधे हुए पहलवान की तरह उनकी तरफ से आखिर में वो दांव चला जाता है जिसके सामने विरोधी चित हो जाते हैं.
2017 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले परिवार और पार्टी के भीतर वर्चस्व और उत्तराधिकार की लड़ाई में फंसे मुलायम सिंह यादव बेटे अखिलेश यादव को डांटते रहे, लेकिन, भाई शिवपाल के साथ खड़े दिख रहे मुलायम का दांव ऐसा रहा कि पार्टी पर पूरी तरह से बेटे अखिलेश यादव का ही कब्जा हो गया.
2008 में अमेरिका के साथ जब यूपीए-1 की सरकार में परमाणु डील के मुद्दे पर लेफ्ट ने समर्थन वापस लिया तो वो मुलायम सिंह यादव ही थे जो उस वक्त सरकार के संकट मोचक बनकर उभरे थे. कभी हां, कभी ना करते-करते मुलायम सिंह यादव ने आखिर में पत्ता खोला और कांग्रेस के साथ खड़े होकर सरकार बचा ली. मुलायम के इस दांव को देखकर सब चकित थे.
लेकिन, यही मुलायम सिंह हैं जिन्होंने 1999 में कांग्रेस की सरकार नहीं बनने दी थी. उस वक्त जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक वोट से संसद में हार गई थी, तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तरफ से कोशिश हुई थी, लेकिन, मुलायम सिंह ने उस वक्त कांग्रेस को समर्थन नहीं दिया था. उस वक्त तर्क था,किसी विदेशी महिला को पीएम पद पर समर्थन नहीं दे सकेंगे.
यह मुलायम का सियासी दांव ही था जो 1999 में कांग्रेस से दूर ले गया लेकिन, 2008 में कांग्रेस के करीब ला दिया.
कांग्रेस विरोध की राजनीति करने वाले मुलायम और भी कई मौके पर कांग्रेस के साथ खड़े रहे हैं. रातों-रात अपना स्टैंड बदलने वाले और आखिरी वक्त तक अपना पत्ता संभाल कर रखने वाले मुलायम सिंह की बाजीगरी 2012 में भी देखने को मिली थी. राष्ट्रपति चुनाव को लेकर कांग्रेस की तरफ से प्रणव मुखर्जी का नाम आगे चल रहा था.लेकिन, उस वक्त कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए मुलायम सिंह ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ मिलकर एक प्रेशर ग्रूप बनाने की कोशिश की थी.
उस वक्त मुलायम सिंह यादव ने ममता बनर्जी के साथ मिलकर राष्ट्रपति पद के लिए संयुक्त उम्मीदवार की बात की थी. ममता बनर्जी राष्ट्रपति पद के लिए प्रणव मुखर्जी के नाम पर राजी नहीं थी, लिहाज मुलायम और ममता ने बैठक कर सोमनाथ चटर्जी, मनमोहन सिंह और ए पी जे अब्दुल कलाम के नाम पर चर्चा की थी. लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने के बाद मुलायम अचानक पल्टी मार गए और फिर कांग्रेस की तरफ से उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी के नाम का समर्थन कर दिया.
ऐसे में मुलायम सिंह यादव के बयान को कितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए यह लाख टके का सवाल है. हां एक बात जरूर है कि इस वक्त बूढ़े हो चुके मुलायम सिंह यादव की अपनी पार्टी और परिवार के भीतर वो धमक नहीं रह गई है, जिसके दम पर अब वो पल्टी मार कर बाजी पलटने की स्थिति में होंगे. लेकिन, उनके बयान ने एसपी के समर्थकों में भ्रम जरूर पैदा कर दिया है.