Shivraj Singh Chouhan Jyotiraditya Scindia Versus Kamal Nath; Reasons Why Congress Lost Madhya Pradesh By Election 2020 | 10 सवालों के जवाब से समझिए मध्यप्रदेश में कांग्रेस क्यों हार गई और क्या होगा इसका असर?

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भोपाल12 मिनट पहलेलेखक: मोहन बागवान

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मध्यप्रदेश उपचुनाव

मध्यप्रदेश के उपचुनाव को भाजपा कैसे जीत पाई? कांग्रेस की रणनीति में कहां खामी रह गई? इस जीत-हार के बाद राज्य की सियासत किस तरफ जाएगी? चुनावी नतीजों को 10 आसान, लेकिन सुलगते सवालों से यहां समझिए…

1. कमलनाथ के भरोसे उपचुनाव की बागडोर सौंपकर क्या कांग्रेस हाईकमान ने बड़ी गलती की?
ऐसा नहीं है। यह सुनियोजित रणनीति के तहत हुआ। कमलनाथ सिंधिया और उनके समर्थकों को संभाल नहीं पाए, इससे हाईकमान पहले से नाराज था। जब चुनाव की बारी आई तो, हाईकमान ने सारी जिम्मेदारी कमलनाथ के जिम्मे डाल दी। शायद यह कहते हुए कि आपने ही बिगाड़ा, आप ही सुधारिये।

2. क्या इमरती देवी को ‘आइटम’ कहने से कुछ सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ वोटिंग हुई?
कोई प्रभाव नहीं दिखा। क्योंकि अगर दिखता तो सबसे ज्यादा असर इमरती देवी की खुद की सीट डबरा में नजर आता। यहां खुद इमरती देवी हार गई हैं, जिन्होंने आइटम के बयान पर इमोशनल कार्ड खेला था।

3. सस्ते बिजली बिल और माफिया के खिलाफ अभियान उठाने की बजाय ‘बिकाऊ नहीं टिकाऊ चाहिए’ का मुद्दा तो कहीं कांग्रेस को नहीं ले डूबा?
सस्ते बिजली बिल और माफिया के खिलाफ अभियान को लोगों ने जरूर पसंद किया था, लेकिन ‘बिकाऊ नहीं-टिकाऊ चाहिए’ लोगों को कनेक्ट नहीं कर पाया। शायद लोग जानने लगे थे कि यह राजनीतिक हथकंडा है।

4. कांग्रेस ने क्या प्रत्याशी चयन में भी गलती की?
गलती का सवाल ही नहीं। क्योंकि कई सीटों पर तो उसे प्रत्याशी ही नहीं मिल रहे थे, मुश्किल से प्रत्याशी ढूंढ़े गए।

5. क्या इसे मतदाताओं ने शिवराज के 15 साल बनाम कमलनाथ के 15 महीने के काम के आकलन के रूप में देखा?
यहां काम की बजाय ग्राउंड कनेक्ट ने ज्यादा काम किया। शिवराज सिंह चौहान का ग्राउंड कनेक्ट, कमलनाथ से बेहतर है, यह रिजल्ट ने भी साबित कर दिया।

6. इस जीत से क्या भाजपा और सरकार में सिंधिया का दखल बढ़ेगा?
जैसा है वैसा ही रहेगा। ग्वालियर-चंबल में सिंधिया के प्रभाव वाली सीटों पर भी भाजपा के प्रत्याशी हार गए हैं। वह ज्यादा दबाव बना पाएंगे, ऐसा लगता नहीं है।

7. यह माना जाए कि दलबदल कानून से बचने के लिए इस्तीफा दो और दूसरी पार्टी ज्वाइन करने का फार्मूला कामयाब रहा?
कर्नाटक के बाद यह पुनरावृत्ति मध्यप्रदेश में हुई। चूंकि, जो पार्टी सत्ता में होती है, उसके प्रति जनता का झुकाव स्वाभाविक ही है, इसलिए उसे उपचुनाव में फायदा होगा ही। यही सोचकर तो थोक में कांग्रेसी, भाजपा में शामिल हुए भी थे।

8. प्रदेश कांग्रेस में क्या फिर नेतृत्व परिवर्तन होगा? कमलनाथ पर नैतिक दबाव कितना बढ़ेगा?
कमलनाथ पर नैतिक दबाव भी बढ़ेगा और नेतृत्व परिवर्तन के सुर भी उठेंगे। कई धड़ों में बंटी कांग्रेस के वह नेता और कार्यकर्ता फिर कमलनाथ के खिलाफ मुखर होने लगेंगे, जो अब तक चुप थे। युवा नेतृत्व को फिर कमान सौंपने की आवाज उठेगी।

9. कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए, उन विधायकों का क्या होगा जो हार गए हैं?
राजनीति में सब कुछ जनाधार पर टिका है। जो हार गए हैं, उनका पुनर्वास मुश्किल है। वैसे ही कांग्रेसियों के पूरे धड़े के आने से भाजपा के कई नेता हाशिये पर चले गए हैं। पार्टी पहले उन्हें संभालेगी।

10. तुलसी सिलावट, महेंद्र सिंह सिसौदिया जैसे कई प्रत्याशी 2018 के मुकाबले बड़े मार्जिन से जीते हैं। क्या यह भाजपा के लिए अच्छा संकेत है?
भाजपा और शिवराज के लिए यह प्रतिष्ठा का चुनाव था। नीचे से लेकर ऊपर तक के नेताओं को प्रचार में झोंका गया। जो असंतुष्ट थे, उन्हें डर और प्रलोभन दोनों दिखाकर अपने साथ किया। इस तरह प्रत्याशी का खुद का और भाजपा का जनाधार मिला तो यह मार्जिन बड़ा हो गया।

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