Only medical experts can compete with Corona; Why is the Indian Medical Service IMS not started on the lines of IAS, not a leader-officer | कोरोना से मुकाबला मेडिकल एक्सपर्ट्स ही कर सकते हैं, नेता-अफसर नहीं; आखिर IAS की तर्ज पर IMS क्यों नहीं शुरू की जा रही?
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नई दिल्ली22 मिनट पहलेलेखक: संध्या द्विवेदी
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पूरा देश मेडिकल इमरजेंसी से गुजर रहा है। व्यवस्था दम तोड़ चुकी है और मौत के आंकड़े थमने का नाम नहीं ले रहे। कोरोना वायरस अभी कितना कहर बरपाएगा, इसका सटीक आकलन वैज्ञानिक भी नहीं कर पा रहे हैं। आखिर महामारी को हैंडल करने में सिस्टम से कहां चूक हुई, ‘भास्कर’ ने यह जाना डॉक्टर्स के सबसे बड़े संगठन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष (IMA) डॉक्टर जे.ए जयलाल से। पेश हैं, बातचीत के चुनिंदा हिस्से…
कोरोना की दूसरी लहर को हैंडल करने में दिक्कत कहां हुई? पूरा मेडिकल सिस्टम फेल क्यों हो गया?
सेकेंड वेव में सबसे बड़ी दिक्कत मेडिकल ऑक्सीजन की कमी रही, लेकिन मैं इसे कमी नहीं, मिस मैनेजमेंट कहूंगा। यह ऑक्सीजन, ब्यूरोक्रेसी और सियासी सिस्टम में फंसकर रह गई। दरअसल, मेडिकल एक्सपर्ट अगर प्रशासनिक पदों पर बैठे होते तो ऑक्सीजन की इतनी बदइंतजामी न होती। मेडिकल प्रोफेशनल्स, मेडिकल इमरजेंसी में प्राथमिकता तय कर लेते, लेकिन प्रशासनिक पदों में बैठे लोग इस बात को समझ ही नहीं पाए कि ऑक्सीजन का कुप्रबंधन कितनी बड़ी त्रासदी लाएगा।
बहुत से कोरोना मरीजों की जान सिर्फ इसलिए गई क्योंकि उन्हें वक्त पर ऑक्सीजन वाले बेड नहीं मिले। आईएमए के अध्यक्ष डॉक्टर जयलाल इसे अफसरशाही का कुप्रबंधन मानते हैं।
IMA पिछले कुछ दिनों से अखिल भारतीय मेडिकल सेवा की मांग क्यों कर रहा है?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लगातार इंडियन मेडिकल सर्विसेज (IMS) की मांग कर रहा है। इसके जरिए मेडिकल की पढ़ाई करने के बाद डॉक्टर्स प्रशासनिक पदों में जा सकेंगे। महामारी के वक्त हमने फिर इस मांग को दोहराया है। सरकार को देर नहीं करनी चाहिए। प्रोफेसर राम गोपाल यादव की अध्यक्षता वाली पार्लियामेंट स्टैंडिंग कमेटी हेल्थ ऐंड फैमिली वेलफेयर ने भी 2021-22 के बजट में इस सर्विसेज के लिए ग्रांट की सलाह दी थी। कमेटी ने 8 मार्च 2021 को अपनी रिपोर्ट संसद के सामने पेश करते हुए कहा था, आपदा में अवसर के तौर पर हमें ‘इंडियन मेडिकल सर्विसेज’ को ऑर्गेनाइज करना चाहिए। IMS की प्लानिंग के लिए एक टास्क फोर्स के गठन की सलाह भी इस कमेटी ने दी थी।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने हेल्थ बजट को बढ़ाकर जीडीपी का 8-10% करने की मांग की है, ये कुछ ज्यादा नहीं है?
भारत जैसे देश में जहां, 130 करोड़ लोग रहते हैं, गांवों में तकरीबन 65 फीसद आबादी रहती है। वहां हेल्थ बजट जीडीपी का 8-10 फीसदी होना कोई ज्यादा नहीं। वैसे भी कई देशों में इतना बजट है। इस समय नहीं, तो आखिर हम कब स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे पर ध्यान देने और मेडिकल प्रोफेशनल्स की संख्या बढ़ाने की जरूरत को समझेंगे? मेडिकल शोध में तेजी और गुणवत्ता लाने के लिए ज्यादा निवेश की जरूरत है। देखिए, जितने भी देश आपको खुशहाल और समृद्ध दिखेंगे, उन सभी का हेल्थ बजट बहुत ज्यादा है। अमेरिका, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, स्वीडन, फ्रांस, जर्मनी, जापान… इन सभी से हम अभी बहुत पीछे हैं।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष (IMA) डॉक्टर जे.ए जयलाल का कहना है कि मेडिकल इमरजेंसी में डॉक्टर ही सही फैसला ले सकते हैं। इसलिए देश में एक अखिल भारतीय मेडिकल सर्विस शुरू की जानी जाहिए।
IMA यह मांग कर रहा है कि ‘हॉस्पिटल वॉयलेंस’ के खिलाफ सेंट्रल लॉ आना चाहिए, लेकिन सरकार लगातार अनदेखी कर रही है। अब, डॉक्टरों ने एक बार फिर इस मांग को उठाया है, क्या इस वक्त हिंसा बहुत ज्यादा बढ़ गई है?
आप देख रहे हैं अस्पतालों में मौतों का आंकड़ा बहुत तेजी से बढ़ा है तो हिंसा भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है। जोखिम में जान डालकर इलाज करने वाले डॉक्टरों को सुरक्षा का खतरा सता रहा है। मेडिकल प्रोफेशन पीस ऑफ माइंड मांगता है, क्योंकि अगर डॉक्टर घबराया रहेगा, तो इलाज पर उसका प्रभाव पड़ेगा। इसलिए डॉक्टरों की सुरक्षा को भारतीय दंड संहिता के तहत लाना चाहिए। जब भी किसी की अस्पताल में मौत होती है तो उसके सगे संबंधियों में इमोशनल आउटब्रेक होता है। वह डॉक्टर को दोष देते हैं। जैसे कि इस समय ज्यादातर मौतें बुनियादी ढांचे में कमी की वजह से हो रही हैं। अस्पताल में ऑक्सीजन खत्म हो गई तो इसमें डॉक्टर का क्या दोष? लेकिन लोग डॉक्टरों के साथ मारपीट, गाली गलौज करते हैं। महिला डॉक्टरों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। लिहाजा डॉक्टरों पर हमले को क्रिमिनल एक्ट के तहत लाना ही चाहिए। इसके लिए सजा और जुर्माना निर्धारित करना चाहिए।
क्या महामारी के दौरान मास्क, पीपीई किट, लाइफ सेविंग ड्रग्स पर जीएसटी थोपा जाना ठीक है?
बिल्कुल नहीं, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन इसे हटाए जाने की मांग कर रहा है। मास्क पर 5 फीसदी, पीपीई किट पर 12 फीसदी और लाइफ सेविंग ड्रग्स पर 12 फीसदी जीएसटी लगाया जा रहा है। कम से कम इस वक्त तो इस जीएसटी को खत्म ही कर देना चाहिए। हमने भारत सरकार को लेटर लिखकर यह मांग की है।