The second wave in India increased the crisis for the world, the government’s laxity and wrong decisions worsened the situation. | भारत में दूसरी लहर ने दुनिया के लिए संकट बढ़ाया, सरकार की ढील और गलत फैसलों से स्थिति बिगड़ी

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नई दिल्ली8 मिनट पहले

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कोरोना प्रभावितों की संख्या दस से तीस गुना अधिक हो सकती है। - Dainik Bhaskar

कोरोना प्रभावितों की संख्या दस से तीस गुना अधिक हो सकती है।

भारत में 14 अप्रैल का दिन बहुत महत्वपूर्ण था। हिंदुओं और सिखों ने नववर्ष मनाया। बड़ी संख्या में मुसलमान रमजान के पहले दिन का रोजा खोलने की तैयारी कर रहे थे। हरिद्वार कुंभ मेला में लाखों लोगों ने गंगा नदी में नदी डुबकी लगाई। उधर, देशभर में कोविड-19 बीमारी से संक्रमित लोगों की संख्या पहली बार दो लाख से ज्यादा दर्ज की गई थी। उसके बाद तो मामले लगातार बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की ढील और लापरवाही के कारण दूसरी लहर बेकाबू हो रही है। सरकार भीड़ भरे आयोजनों पर रोक लगाने में विफल रही है। वैक्सीन खरीदने और वायरस की रिसर्च के लिए पैसा देने के निर्णय देर से लिए गए हैं।

महामारी की दूसरी भयावह लहर ना केवल भारत बल्कि दुनिया के लिए भी विध्वंसक साबित हो सकती है। वायरस के बेकाबू फैलाव से खतरनाक नए स्ट्रेन के उदय का खतरा बढ़ता है। भारत में पहली बार पहचानी गई वायरस की नई किस्म-डबल म्यूटेंट अमेरिका, ब्रिटेन सहित कई अन्य देशों में पाई जा चुकी है। भारत की दूसरी लहर का तात्कालिक प्रभाव दुनिया के बाकी देशों में वैक्सीन की सप्लाई पर पड़ा है। संक्रमण बढ़ने पर सरकार ने वैक्सीनों के निर्यात पर रोक लगा दी है।

भीड़ भरे शहरों और कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं के कारण भारत में किसी संक्रामक बीमारी पर काबू पाना आसान नहीं है। फिर भी, सितंबर, 2020 में शिखर पर पहुंची पहली लहर में मौतों की संख्या आश्चर्यजनक रूप से कम थी। कई अन्य सरकारों के समान इस वर्ष तक महामारी से निपटने में भारत सरकार का रिकॉर्ड खराब नहीं था। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनदेखी और आत्मसंतुष्टि ने स्थिति को नियंत्रण से बाहर होने दिया। जनवरी में मोदी ने शेखी बघारी कि हमने ना केवल अपनी समस्याएं सुलझाई हैं बल्कि महामारी से निपटने में विश्व की सहायता की है। उधर, मार्च की शुरुआत में जब विपक्ष शासित महाराष्ट्र में मामले बढ़ना शुरू हुए तो मोदी सरकार ने राज्य सरकार को गिराने की उम्मीद में उसकी मदद करने की बजाय उस पर हमले किए।

राजनीतिक फायदा उठाने के लिए मोदी के लगातार जारी अभियान की झलक इस माह विधानसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल में दिखाई पड़ी है। वे, उनके सिपहसालारों और प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों के नेताओं ने कई विशाल रैलियां की हैं। इनमें मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का कतई पालन नहीं किया गया। इससे प्रदेश के दस करोड़ लोगों के बीच महामारी फैलने का खतरा तो है ही लेकिन इसके कारण सरकार का ध्यान बीमारी से लड़ने पर नहीं रहा।

मोदी के दाएं हाथ गृहमंत्री अमित शाह अप्रैल के पहले 18 दिनों में से 12 दिन चुना‌‌व प्रचार में व्यस्त रहे। इससे समझने में मदद मिल सकती है कि मोदी की वैक्सीन नीति कैसे इतनी गड़बड़ है। फरवरी के मध्य तक सरकार ने केवल 3% आबादी के लिए डोज के ऑर्डर दिए थे। सरकारी नियामक एजेंसी ने स्वदेशी वैक्सीन- कोवैक्सीन को सभी जरूरी ट्रायल पूरे किए बिना ही मंजूरी दे दी थी। दूसरी ओर विदेशी वैक्सीन के लिए अतिरिक्त रूकावटें खड़ी की गई थीं।

इस बीच, सरकार के फैसलों में सुधार के संकेत मिले हैं। वैक्सीनों के तेजी से आयात को सरकार ने हरी झंडी दे दी। सरकार ने सीरम इंस्टीट्यूट को उत्पादन बढ़ाने के लिए तीन हजार करोड़ रुपए दिए हैं। भारतीय जनता पार्टी ने बंगाल में बड़ी चुनाव रैलियों को रद्द कर दिया है। अगले माह से 18 साल से अधिक आयु के लोगों को वैक्सीन लगाने का निर्णय लिया गया है। हालांकि, देश के अधिकतर हिस्सों में वैक्सीन की कमी को देखते हुए इस फैसले से सीमित फायदा होगा।

प्रभावितों की संख्या दस से तीस गुना अधिक हो सकती है

भारत में वायरस से प्रभावित लोगों का सरकारी आंकड़ा हिमखंड के ऊपरी हिस्से के समान है। महामारी विदों का कहना है, बड़े शहरों में कम टेस्टिंग के कारण संक्रमित लोगों की संख्या दस से तीस गुना अधिक हो सकती है। दिसंबर में नेशनल सेरोलॉजिकल सर्वे में पाया गया कि 21% भारतीयों में कोविड-19 एंटीबॉडी हैं जबकि उस समय केवल 1% व्यक्ति संक्रमित हुए थे।

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