Priyanka Gandhi Entry In Politics Has Changed Political Equations In Uttar Pradesh | प्रियंका की राजनीतिक पारी से यूपी में सियासी समीकरण बदले
प्रियंका गांधी पूर्वी यूपी के वाराणसी के दौरे पर जाने वाली हैं. वो प्रधानमंत्री की सीट से यूपी में मैसेज देने की तैयारी कर रही हैं. कांग्रेस को यूपी में अपने पैर पर खड़ा करने की चुनौती है. प्रियंका सीटवार रणनीति बना रही हैं. इससे पहले उन्होंने सोमवार को बुदेलखंड के लोगों से दिल्ली में मुलाकात की है. जिसमें लोकसभावार लोगों से मुलाकात की है.
प्रियंका गांधी अभी लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से फीडबैक ले रही हैं. इसके बाद कांग्रेस की रणनीति तय होगी. हालांकि प्रियंका गांधी की वजह से एसपी-बीएसपी दबाव में हैं. लेकिन अभी रणनीति का खुलासा नहीं हो रहा है. मायावती लगातार कांग्रेस पर अटैक कर रही हैं.अखिलेश यादव खामोश हैं. अभी दोनों दल जमीनी हालात का अंदाजा लगा रहे हैं.
कांग्रेस और गठबंधन
कांग्रेस अभी सीधे तौर पर गठबंधन की हामी नहीं भर रही है. अभी जमीनी हालात का आंकलन कर रही है. इस बीच यूपी के महान दल से कांग्रेस ने गठबंधन किया है. इसके अलावा शिवपाल यादव की पार्टी से गठबंधन की संभावना है. जिसके लिए बातचीत हो रही है. हालांकि कांग्रेस अभी अपनी जमीनी उपस्थिति का अंदाजा लगाने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस में लोग शामिल हो रहे हैं. खासकर पुराने कांग्रेसी नेता लौट रहे हैं. दूसरे दलों पर हाशिए चल रहे नेता भी कांग्रेस की तरफ देख रहे हैं.
कांग्रेस अभी गठबंधन पर आगे बढ़ने से पहले पार्टी को मजबूत करने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस की मजबूती के हिसाब से गठबंधन की बातचीत हो सकती है. जनता का रुझान कांग्रेस की तरफ बढ़ रहा है. जिससे कांग्रेस उत्साहित है, लेकिन ये उत्साह सीट में तब्दील होगा ये गारंटी नहीं है. कांग्रेस के पास अभी माकूल जातीय समीकरण नहीं है. जिसकी वजह से पार्टी के भीतर आत्मविश्वास की कमी है. इस आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए प्रियंका गांधी का चेहरा है, लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए प्रियंका गांधी के पास वक्त की कमी है.
जिन दलों के साथ गठबंधन हुआ है. उनका वजूद अभी इतना नहीं है, जो कांग्रेस को गठबंधन और बीजेपी के मुकाबले खड़ी कर सकती है. कांग्रेस भी हकीकत समझ रही है.
प्रियंका भी समझ रही हालात
यूपी में कांग्रेस के लोगों से मुलाकात के दौरान कई लोगों ने कहा कांग्रेस 40 सीट जीतेगी.अगर अकेले चुनाव लड़ी तो उनका चेहरा ही काफी है. प्रियंका गांधी ने पहले ऐसे लोगों को टोका फिर मुस्कुराईं और कहा कि ये नंबर आप ज्यादा बता रहे हैं. जाहिर है कि उन्हें जमीनी हालात का अंदाजा है. उन्हें मालूम है कि यूपी के जातीय समीकरण साधना जरूरी हैं.
लोकसभा वार जिस तरह हर सीट का फीड बैक लिया गया है,उससे खाका तैयार है. इसके अलावा एक ऐसी टीम काम कर रही है, जिसके बारे में ज्यादा खुलासा नहीं किया गया है. वो भी अपने हिसाब से फीड बैक दे रही है. जिससे नई महासचिव का काम आसान हो जाए. हालांकि कांग्रेस के पास संसाधन युक्त नेताओं की कमी है जो कांग्रेस के लिए मजबूती से खड़ा हो सकता हो, ये कमी कम नहीं है. कांग्रेस के पास गिनती के चुनिंदा नेता हैं. ऐसा कोई असरदार नेता नहीं है जो पूरे प्रदेश में लोकप्रिय हो, इस लिहाज से प्रियंका गांधी को ही प्रदेश के नेता की तरह काम करना पड़ सकता है.
गठबंधन के साथ जाने पर कश्मकश
कांग्रेस में दो खेमा साफ दिखाई पड़ रहा है. पहला खेमा जिसमें कांग्रेस कार्यकर्ता ज्यादा हैं. ये लोग अकेले चुनाव लड़ने की वकालत कर रहे हैं. इन लोगों ने प्रियंका गांधी से कहा है कि कांग्रेस को अकेले लड़ने की जरूरत है ताकि पार्टी मजबूती से खड़ी हो सके. लेकिन जिन लोगों को चुनाव लड़ना है. उनकी राय अलग है. हालांकि स्वर मुखर नहीं हैं, लेकिन दबी जुबान में सभी गठबंधन की वकालत कर रहे हैं. अभी सब देख रहे हैं कि प्रियंका गांधी का मूड क्या है ? वो क्या चाहती हैं ?
अकेले चुनाव लड़ने की वकालत करने वालों की दलील है कि 2009 में 67 सीट पर लड़कर कांग्रेस नंबर वन पार्टी बन गई थी. लेकिन उस वक्त हालात अलग थे. बीजेपी कमजोर थी. यूपी में ध्रुवीकरण इतना ज्यादा नहीं था. एसपी-बीएसपी भी मजबूत थी. कांग्रेस को मनरेगा और कर्जमाफी का राजनीतिक लाभ मिल गया था. लेकिन 2014 में बीजेपी की मजबूती में कांग्रेस धराशायी हो गयी थी.
क्या सोच रही है कांग्रेस?
कांग्रेस के नेता समझ रहे हैं कि आम चुनाव में बीजेपी को पटखनी देने की जरूरत है. इसलिए गठबंधन के खिलाफ कोई बोल नहीं रहा है.सभी आलाकमान के रुख का इंताजार कर रहे हैं. हालांकि अभी गठबंधन की तरफ से औपचारिक पेशकश का इंतजार है. कांग्रेस के सूत्र दावा रहे हैं कि गठबंधन के लोग अंदरखाने बातचीत के लिए तैयार हैं. लेकिन कांग्रेस अब बराबरी के हिस्से की तलबगार है. प्रियंका गांधी के दौरों से ये दबाव गठबंधन पर बढ़ेगा.
चुनाव प्रक्रिया की शुरुआत नहीं
कांग्रेस ने प्रदेश में उम्मीदवार चयन की पहली प्रक्रिया शुरू नहीं की है. लोकसभा वार सीटों के लिए ऑब्जर्वर नहीं बनाए गए हैं. बाकी राज्यों में ये काम चल रहा है. जाहिर है कि इससे लग रहा है कि अभी कांग्रेस के गठबंधन में शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. 2017 के विधानसभा चुनाव में 27 साल बेहाल का अभियान चला कर, एसपी से अंत में गठबंधन कर लिया था. हालांकि बीजेपी की आंधी में ये गठबंधन हवा हो गया था. अब हालात बीजेपी के खिलाफ हैं. हालांकि बीजेपी का कोर वोट बरकरार है. बीजेपी से फ्लोटिंग वोट छिटका है.
अल्पसंख्यक वोट का बिखराव?
कांग्रेस और गठबंधन के अलग लड़ने से मुस्लिम वोट में बिखराव हो सकता है. इस वोट का रुझान कांग्रेस की तरफ बढ़ रहा है. जिससे गठबंधन विचलित हो रहा है. लेकिन इस वोट के बिखरने से कांग्रेस और गठबंधन को नुकसान हो सकता है एसपी-बीएसपी से अल्पसंख्यक वर्ग नाराज चल रहा है. इस वर्ग का मानना है कि एसपी-बीएसपी ने कांग्रेस को कमजोर करने के लिए गठबंधन से अलग रखा है. इसको समाजवादी पार्टी समझ रही है. बीएसपी अभी इस बात को नजर अंदाज कर रही है. कांग्रेस के आने से मुस्लिम वोट बीजेपी हराओ वाले अभियान में लग सकता है. जो गठबंधन के लिए मुफीद नहीं है.
बीजेपी की स्थिति
बीजेपी के लिए कांग्रेस का अलग जाना फायदेमंद दिखाई पड़ रहा है. हालांकि जहां कांग्रेस की बीजेपी से सीधी लड़ाई है वहां बीजेपी को नुकसान हो सकता है. हालांकि मजबूत त्रिकोणीय लड़ाई में बीजेपी को फायदा हो सकता है. बीजेपी की स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ता मजबूत है .कांग्रेस के पास नेता मजबूत हैं.
हालांकि एंटी-इनकंबेसी का नुकसान बीजेपी को होगा, लेकिन जिस तरह से यूपी में बीजेपी जातीय समीकरण का ध्यान रख रही है. उससे इस हालात पर काबू पा सकती है.