शराब में ऐसा क्या होता है कि जिसे पीते ही सबसे डरपोक इंसान में भी आ जाता है अचानक कॉन्फिडेंस ?
Why Alcohol Gives Courage: क्या आपने कभी गौर किया है कि जैसे ही कोई दो पेग पीता है, उसका आत्मविश्वास अचानक बढ़ जाता है और वो ज़्यादा खुलकर बातें करने लगता है ?

कई लोगों को लगता है कि कुछ घूंट शराब उनके आत्मविश्वास का राज हैं। शराब पीने के बाद कोई पार्टी में ज़्यादा बोल पाता है, कोई अपने दिल की बात कहने की हिम्मत जुटा लेता है, तो कोई मंच पर जाने का डर भूल जाता है। लेकिन क्या शराब वाकई इंसान को आत्मविश्वासी बनाती है या सिर्फ़ दिमाग को अस्थायी रूप से झूठा भरोसा दिलाती है? इस सवाल का जवाब हमारे मस्तिष्क के अंदर चल रही बेहद जटिल प्रक्रिया में छिपा है। आइए जानें कैसे—
जब कोई व्यक्ति शराब पीता है, तो यह सीधे मस्तिष्क में जाकर न्यूरोट्रांसमीटर यानी दिमागी रसायनों के संतुलन को बदल देती है। इनमें सबसे अहम भूमिका होती है GABA (Gamma-Aminobutyric Acid) नामक रसायन की। शराब GABA की तरह काम करते हुए दिमाग की गतिविधियों को धीमा कर देती है, जिससे व्यक्ति को आराम, तनाव में कमी और सुरक्षा का झूठा अहसास होता है। यही वजह है कि लोग कहते हैं—“एक पेग के बाद सारी झिझक गायब हो जाती है।”
शराब प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स को भी प्रभावित करती है — यही दिमाग का वह हिस्सा है जो समझदारी, तर्क और आत्म-नियंत्रण से फैसले लेने में मदद करता है। जब यह हिस्सा सुस्त हो जाता है, तो व्यक्ति की झिझक और डर कम हो जाता है। नतीजा यह कि जो काम पहले मुश्किल या डरावना लगता था, वही शराब के असर में आसान और मजेदार लगने लगता है। इसलिए लोग नशे में ज़्यादा खुलकर बोलते हैं, हंसते हैं, और कई बार ऐसी बातें भी कह जाते हैं जो होश में शायद कभी न कहते।
इसके अलावा, शराब डोपामाइन नामक रसायन को भी बढ़ा देती है, जो दिमाग में खुशी और उत्साह की भावना पैदा करता है। इससे व्यक्ति को उस पल में आत्मविश्वास और संतुष्टि महसूस होती है — मानो वह हर चुनौती का सामना कर सकता हो। लेकिन यह आत्मविश्वास असली नहीं होता; यह सिर्फ कुछ घंटों के लिए दिमागी रसायनों की गड़बड़ी का परिणाम होता है।
जैसे-जैसे शराब का असर उतरता है, डोपामाइन का स्तर घटने लगता है, GABA की गतिविधि सामान्य हो जाती है, और दिमाग अपनी असली स्थिति में लौट आता है। तब कई बार व्यक्ति को अपने व्यवहार पर पछतावा होता है, क्योंकि उस समय किए गए फैसले समझदारी पर नहीं, बल्कि रासायनिक भ्रम पर आधारित होते हैं।



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