“BJD के गिरते ग्राफ से जगी उम्मीद, ओडिशा की सियासत में वापसी की राह देख रही कांग्रेस”

“ओडिशा में कांग्रेस, बीजद की कमजोर होती पकड़ को सत्ता में वापसी का अवसर मान रही है। पार्टी संगठन को मजबूत करने और विपक्ष की भूमिका बीजद से छीनने की रणनीति पर काम कर रही है। भाजपा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी इसी प्लान का हिस्सा है। जल्द ही राहुल गांधी की ओडिशा यात्रा प्रस्तावित है।”

ओडिशा की सियासत में वापसी का रास्ता देख रही कांग्रेस

ओडिशा में सत्ता वापसी की राह तलाश रही कांग्रेस

ओडिशा की सियासत में वापसी का रास्ता देख रही कांग्रेस
ओडिशा की सियासत में वापसी की राह देख रही कांग्रेस

राज्यों में संगठन को दुरुस्त करने की कवायद में जुटी कांग्रेस को ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजद) के गिरते ग्राफ के बीच सत्ता की राजनीति में वापसी का अवसर नजर आ रहा है। इसी मद्देनजर पार्टी ने राज्य में संगठन को धारदार बनाने के लिए व्यापक पुनर्गठन अभियान शुरू किया है और साथ ही बीजद से विपक्ष की केंद्रीय भूमिका छीनने की कोशिश भी तेज कर दी है।

ओडिशा की भाजपा सरकार की नीतियों और कानून-व्यवस्था के खिलाफ चलाए गए जमीनी आंदोलनों के बाद विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाना कांग्रेस की इस रणनीति का हिस्सा है। इसके अलावा, पार्टी ऐसे राजनीतिक दांव भी चल रही है जिससे भाजपा और बीजद को एक ही सिक्के के दो पहलू के रूप में प्रस्तुत किया जा सके।

वेणुगोपाल का ओडिशा दौरा और हाईकमान की सक्रियता
कांग्रेस हाईकमान लगातार राज्य में संगठन निर्माण और सियासी अभियानों की सीधे समीक्षा कर रहा है। ओडिशा की सत्ता की होड़ में लौटने की गंभीरता इस बात से भी साफ होती है कि बिहार विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी की यात्रा की रूपरेखा तैयार की जा रही है। संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल पिछले हफ्ते ओडिशा के दौरे पर थे और सोमवार को दिल्ली में केंद्रीय पर्यवेक्षकों के साथ बैठक कर संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने पर चर्चा की।

प्रदेश में भाजपा सरकार के खिलाफ कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव सोमवार को खारिज हो गया, लेकिन उसके तुरंत बाद ‘भाजपा और बीजद भाई-भाई’ का नारा बुलंद कर कांग्रेस ने अपने आक्रामक तेवर और स्पष्ट कर दिए। हालिया उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजद के तटस्थ रुख और वोटिंग से दूरी बनाने के बाद कांग्रेस को राज्य में विपक्ष की मुख्य भूमिका फिर से हासिल करने की संभावना दिख रही है।

बीजद के लिए चुनौतीपूर्ण दौर
बीजद की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उसके प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक खराब स्वास्थ्य के कारण सक्रिय नहीं हैं। पार्टी न तो अपनी राजनीतिक दिशा तय कर पा रही है और न ही विपक्षी भूमिका निभा रही है। भाजपा सरकार के खिलाफ सवा साल से लगातार मुद्दे उठने के बावजूद बीजद की सक्रियता बेहद सीमित रही है। इसी वजह से उपराष्ट्रपति चुनाव में तटस्थ रहने को कांग्रेस ने भाजपा समर्थन की तरह पेश किया और विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस भी दिया। कांग्रेस के सभी 14 विधायक नवीन पटनायक के दफ्तर तक समर्थन मांगने पहुंचे, लेकिन वे मुलाकात नहीं कर पाए।

कांग्रेस की रणनीति और संगठनात्मक कसरत
स्पष्ट है कि कांग्रेस की रणनीति बीजद को विपक्ष की भूमिका से बाहर धकेलने की है। भले ही बीजद के पास 50 विधायक हों, लेकिन वह विपक्ष की धार नहीं दिखा पा रही। कांग्रेस ने हार के बाद भक्त चरण दास को प्रदेश अध्यक्ष बनाया और अब जिलों के अध्यक्षों की सीधी नियुक्ति प्रक्रिया भी चल रही है। केसी वेणुगोपाल पिछले हफ्ते इसी संगठनात्मक कवायद की समीक्षा करने ओडिशा गए थे और सोमवार को दिल्ली में बैठकों का दौर किया। इसके बाद उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा कि जिला और जमीनी स्तर पर संगठन को मजबूत कर राज्य में निर्णायक भूमिका निभाने पर जोर दिया गया है।

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Written by Admin

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