love jihad law in up: यूपी में लव जिहाद के खिलाफ कानून और असम में मदरसों को खत्म करनाः इन दो कानूनों के पीछे कौन से दो चेहरे? – love jihad law in uttar pradesh and assam madarsa education stapped both states ministe brijesh pathak and himanta biswa sarma interview

हाइलाइट्स:

  • यूपी में लव जिहाद के खिलाफ बनाया गया है कानून
  • असम में मदरसों और संस्कृत स्कूलों को किया गया सामान्य शिक्षा वाला
  • यूपी के कानून मंत्री बृजेश पाठक और असम के कानून मंत्री हिमांता बिस्व सरमा का अहम रोल

लखनऊ
इस वक्त देश में दो कानूनों की खास चर्चा है। पहला कानून यूपी का है, जो शादी के लिए धर्म परिवर्तन को रोकता है। तमाम दूसरे राज्य इसका अनुसरण रहे हैं। दूसरा कानून असम का है जिसके तहत सरकारी खर्च से चलने वाले मदरसों और संस्कृत विद्यालयों को सामान्य स्कूलों में बदल दिया गया है। यह कानून भी अन्य राज्यों के लिए नजीर बन रहा है। बतौर कानून मंत्री बृजेश पाठक यूपी के और बतौर शिक्षा मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा असम के कानून के शिल्पकार हैं। दोनों के बारे में बता रहे हैं नदीम:

वकील बनना चाहते थे बृजेश
यह साल 1980 था जब बृजेश पाठक हरदोई जिले से इंटर पास करके आगे की पढ़ाई के लिए लखनऊ आए। बीकॉम किया और उसके बाद चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने के लिए आईसीडब्ल्यूए में दाखिला लिया। पारिवारिक पृष्ठभूमि ऐसी थी जो उन्हें लंबे वक्त तक बिना कमाए पढ़ते रहने की इजाजत नहीं दे रही थी। उधर सीए बनने का रास्ता लंबा होता दिख रहा था। उन्होंने ट्रैक बदला, तय किया कि अब एलएलबी करनी है ताकि कोर्स पूरा होते ही वकालत शुरू हो सके।

पढ़ाई के दौरान राजनीति का लगा चस्का

बृजेश को लखनऊ विवि में कानून की पढ़ाई के दौरान उन्हें राजनीति का चस्का लगा। वे पहले छात्रसंघ में विधि प्रतिनिधि हुए, उसके बाद उपाध्यक्ष और अध्यक्ष की कुर्सी तक जा पहुंचे। यह वह समय था, जब माना जाता था कि लविवि के छात्र संघ का दरवाजा विधानसभा के अंदर खुलता है। बृजेश के अंदर अब विधानसभा पहुंचने की ख्वाहिश जाग चुकी थी। पहले 1996 और उसके बाद 2002 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी से टिकट पाने की बहुत कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी।

ऐसे शुरू हुआ सफर
आखिरकार उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर पहला चुनाव 2002 में लड़ा, पर महज 130 वोटों से हार गए। इतनी नजदीकी हार ने उन्हें तमाम राजनीतिक दलों की नजर में चढ़ा दिया। बृजेश ने अपनी हार को कोर्ट में चुनौती दी। 2004 की वह एक दोपहर थी, जब चुनाव याचिका पर सुनवाई के दौरान वे कोर्ट में मौजूद थे, उन्हें बीएसपी चीफ मायावती का संदेशा मिला। दरअसल तब लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी थी, बीएसपी को ऐसे ब्राह्मण चेहरे की जरूरत थी जो बिरादरी के वोट पार्टी की तरफ ला सके। बृजेश को उन्नाव सीट से लोकसभा का टिकट दिया गया। यह वही चुनाव था, जिसमें पहली बार ‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश है’ का नारा गढ़ा गया था। बृजेश वह चुनाव जीत गए और उसके बाद उन्होंने राजनीति में पीछे मुड़कर नहीं देखा।

2017 में जॉइन की बीजेपी
बीएसपी ने बाद में बृजेश को राज्यसभा भी भेजा, लेकिन यूपी के 2017 के चुनाव के वक्त उनकी मुलाकात अमित शाह से हुई, और फिर यहीं से उनके बीजेपी में आने का रास्ता खुल गया। वे बीजेपी के टिकट से लखनऊ से चुनाव जीते और कानून मंत्री बन गए। इन दिनों वे अटल बिहारी वाजपेयी की स्मृतियों को संजोने में लगे हैं। इसके लिए उन्होंने अटल जी के नाम पर फाउंडेशन स्थापित किया है। उनके नाम पर वे एक फैलोशिप भी शुरू करने वाले हैं।

बीजेपी के लिए बसंत हैं हेमंत

2016 में बीजेपी ने पहली बार असम फतह किया और नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में एक तरह से अपनी एंट्री की, तो राजनीतिक गलियारों में इसका श्रेय हेमंत बिस्वा सरमा को दिया गया। बीजेपी ने भी इस बात को महसूस किया, यही वजह रही कि नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में विस्तार पाने को उन्हें अपना चेहरा बनाया। कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने एक तरह से सरमा को थाली में सजाकर बीजेपी को सौंप दिया था।

कांग्रेस के खास थे सरमा लेकिन…

सरमा एक वक्त कांग्रेस के भरोसेमंद नेताओं में से थे, पार्टी के लिए एक तरह से संपत्ति की तरह थे। लगातार तीन बार से वे विधायक चुने जा रहे थे। राज्य सरकार के मंत्री भी थे, लेकिन 2016 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें लगा कि पार्टी को उन्हें चेहरा बनाना चाहिए। लगातार तीन बार से मुख्यमंत्री हो रहे तरुण गोगोई की उम्र भी 80 पहुंच रही थी। लेकिन तरुण गोगोई हेमंत के लिए जगह बनाने को तैयार नहीं हुए और अपनी जगह अपने बेटे को स्थापित करने में जुट गए। हेमंत बिस्वा सरमा अपनी बात रखने के लिए राहुल गांधी से मिलने का वक्त मांगते रहे, लेकिन हैरान कर देने वाली बात यह रही कि बड़े जनाधार वाले इस नेता को राहुल ने मुलाकात का वक्त नहीं दिया। बस यही बात हेमंत के दिल में ऐसी लगी कि उन्होंने ठान लिया कि अब उन्हें कांग्रेस को अपनी ताकत का अहसास करा कर ही दम लेना है। इसके लिए उन्होंने बीजेपी जॉइन की और फिर वह करिश्मा कर दिखाया, जिसकी इच्छा उनके दिल में थी।

कांग्रेस को हेमंत ने ऐसे दिया करारा जवाब

हेमंत ने उस वक्त मीडिया से बातचीत में स्वीकार भी किया था, ‘मैंने राहुल से मिलने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन्होंने मेरी बात सुनने से ज्यादा अपने कुत्तों के साथ खेलना बेहतर समझा। वे पार्टी के नेताओं की बात सुनने से ज्यादा अपने कुत्तों के साथ खेलने में बिजी रहते हैं। जब अमित शाह ने मुझे मिलने के लिए बुलाया तो मैंने उन्हें बोल दिया कि अब आपका इंतजार का समय खत्म हुआ।’

ऐसे राजनीति में आए हिमांता

1969 में जन्मे हेमंत पॉलिटिकल सांइस में पोस्ट ग्रेजुएट हैं, साथ ही एलएलबी भी हैं। उन्होंने कुछ वक्त तक गुवाहटी हाईकोर्ट में प्रैक्टिस भी की, लेकिन इसमें ज्यादा मन नहीं लगा और फिर उन्होंने राजनीति की तरफ मुंह किया। 2001, 2006 और 2011 में वे कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीते, लेकिन 2015 में जब कांग्रेस में तवज्जो मिलती नहीं दिखी तो उन्होंने बीजेपी जॉइन कर ली। 2016 का चुनाव बीजेपी से जीते और सरकार में मंत्री बने।

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