Uttar Pradesh(UP) Politics: Relations Between Mayawati & Akhilesh Yadav Deteriorate

हाइलाइट्स:

  • 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले साथ आए ‘बुआ’ और ‘भतीजे’ अब एक-दूसरे के कट्टर विरोधी
  • बीएसपी सु्प्रीमो मायावती ने एसपी प्रमुख अखिलेश यादव की स्थिति मुलायम सिंह यादव जैसी करने की धमकी दी
  • 2 जून 1995 के गेस्ट हाउस कांड के मामले को लोकसभा चुनाव के दौरान वापस लेने को मायावती ने बताया बड़ी भूल

लखनऊ
यूपी की सियासत में कब क्या हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता है। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले साथ आए ‘बुआ’ और ‘भतीजे’ अब एक-दूसरे के कट्टर विरोधी हो गए हैं। आलम यह है कि बीएसपी सु्प्रीमो मायावती ने गुरुवार को एसपी प्रमुख अखिलेश यादव की स्थिति मुलायम सिंह यादव जैसी करने की धमकी दी है। दरअसल मायावती राज्यसभा चुनाव से ऐन पहले बीएसपी के विधायकों के एसपी के खेमे में जाने से गुस्सा गई हैं। उनका कहना है कि 2003 में मुलायम ने बीएसपी तोड़ी तो उनकी बुरी गति हुई, अब अखिलेश ने यह काम किया है, उनकी बुरी गति होगी।

मायावती ने कहा, ‘लोकसभा चुनाव में NDA को सत्ता में आने से रोकने के लिए हमारी पार्टी ने समाजवादी सरकार में मेरी हत्या करने के षड्यंत्र की घटना को भूलाते हुए गठबंधन करके चुनाव लड़ा था। वहीं एसपी ने सिर्फ ‘मतलब’ के लिए गठबंधन किया था।’ इस दौरान बीएसपी सुप्रीमो ने ऐलान किया कि अब बहुजन समाज पार्टी, अखिलेश यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी को सत्ता से दूर रखने के लिए किसी से भी हाथ मिला सकती है, चाहे वो बीजेपी ही क्यों ना हो।

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बीएसपी में 1994 से ऐसे शुरू हुआ टूट का सिलसिला
यह पहला मौका नहीं है जब बीएसपी में विधायकों की बगावत हुई है। पार्टी के संस्थापक सदस्यों में एक राजबहादुर ने बीएसपी के कई विधायकों को तोड़कर अपनी नई पार्टी बनाई। 20 से ज्यादा विधायकों को तोड़कर उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाई थी। टांडा के मसूद अहमद भी कांशीराम के जमाने से बसपा में थे। 1985 से 1993 तक पूर्वी उत्तरप्रदेश के प्रभारी तक रहे हैं। इन्हें भी कुछ मतभेद के चलते पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया गया। उनके अलावा आरके चौधरी, शाकिर अली, राशिद अल्वी, जंग बहादुर पटेल, बरखू राम वर्मा, सोने लाल पटेल, राम लखन वर्मा, भगवत पाल, राजाराम पाल, राम खेलावन पासी, कालीचरण सोनकर समेत कई ऐसे नेता हैं जिन्हें बीएसपी से बाहर का रास्ता दिखाया गया।

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17 साल पहले का घटनाक्रम हुआ ताजा
ताजा घटनाक्रम ने 17 साल पहले की उस घटना की याद ताजा कर दी है। जब सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने कम विधायक होने के बावजूद बसपा के 13 विधायक तोड़े थे और भाजपा के परोक्ष समर्थन से सरकार बना ली थी। मामला हाई कोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा था और आखिरकार बसपा के विधायकों की सदस्यता रद हुई थी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

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‘गेस्ट हाउस कांड के मामले को वापस लेना भूल’
1995 के गेस्ट हाउस कांड के केस को वापस लेने को बड़ी भूल बताते हुए बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा कि समाजवादी पार्टी के मुखिया गठबंधन होने के पहले दिन से ही एससी मिश्रा जी को ये कहते रहे कि अब तो गठबंधन हो गया है तो बहनजी को केस वापस ले लेना चाहिए। चुनाव के दौरान 2 जून 1995 के केस को वापस लेना पड़ा था। उन्होंने कहा कि चुनाव का नतीजा आने के बाद इनका जो रवैया हमारी पार्टी ने देखा है, उससे हमें ये ही लगा कि केस को वापस लेकर बहुत बड़ी गलती करी और इनके साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए था।

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‘एसपी का दलित विरोधी चेहरा दिखा’
मायावती ने कहा कि समाजवादी पार्टी का एक और दलित विरोधी चेहरा हमें कल (बुधवार) राज्यसभा के पर्चों के जांच के दौरान देखने को मिला। इसमें सफल न होने पर ये ‘खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे’ की तरह जबरदस्ती बीएसपी पर बीजेपी के साथ सांठगांठ करके चुनाव लड़ने का गलत आरोप लगा रही है।

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